एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ रूमैटॉलजी में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उमा कुमार -
देश में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां मधुमेह, रक्तचाप, दिल के रोग आदि बढ़ रहे हैं, लेकिन एक और बीमारी है, जो तेजी से अपने पैर पसार रही है। खेद की बात यह है कि इसकी ओर नीति-निर्माताओं का ध्यान भी कम है। यह रोग है मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द से जुड़ा गठिया या आर्थ्राइटिस।
इसमें मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, सूजन, लालिमा पैदा होती है। इसके रोगी को उठने-बैठने, चलने-फिरने, झुकने या किसी खास किस्म का कार्य करने में तकलीफ होती है। इसे रूमैटिज्म या गठिया कहते हैं। गठिया की बीमारी करीब दो सौ किस्म की होती है। कई बार कई किस्म के बुखार या कभी-कभी मांसपेशियों के दबने या उन पर दबाव पड़ने की वजह से भी मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है। मोटे तौर पर यदि सुबह उठने के बाद आधे घंटे के भीतर शरीर की जकड़न दूर नहीं हो रही है तो यह गठिया के लक्षण हो सकते हैं।
गठिया क्यों बढ़ रहा है?
इसके लिए पर्यावरण से जुड़े कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि जहां प्रदूषण की समस्या ज्यादा गंभीर है, वहां गठिया ज्यादा हो रहा है। आर्थ्राइटिस आंतों में संक्रमण की वजह से भी होता है, जिसकी वजह दूषित खान-पान हो सकता है।
नए अध्ययन संकेत दे रहे हैं कि जीवनशैली भी इस बीमारी को बढ़ा रही है। ज्यादा खाने-पीने के कारण मोटापे की चपेट में आने, एक स्थिति में ज्यादा देर तक बैठे रहने, कंप्यूटर पर लंबे समय तक कार्य करने, कंधे व गर्दन के बीच मोबाइल दबा कर लंबे समय तक बात करने जैसी स्थितियों से भी मांसपेशियों एवं जोड़ों का दर्द होता है। हालांकि यह गठिया नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव गठिया जैसे ही महसूस होते हैं। दूसरे ज्यादा उम्र वालों में ही नहीं, बच्चों व जवानों में भी गठिया हो रहा है।
प्रदूषण बड़ा कारक
गठिया को लेकर हमने एम्स की ओपीडी में आने वाले 300 मरीजों के आंकड़े जुटाए हैं। आरंभिक जांच में यह पाया गया कि जब दिल्ली में पीएम-2.5 की मात्रा हवा में ज्यादा पाई गई, तब गठिया के रोगी ज्यादा सामने आए। ऐसे मरीजों के आंकड़े एकत्र किए गए, जिससे यह बात सामने आती है कि जब हवा में पीएम-2.5 ज्यादा मात्रा में घुल जाते हैं तो यह सांस लेने के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। रक्त के साथ ये शरीर के सभी अंगों में पहुंचते हैं। इसी प्रक्रिया में पीएम-2.5 की मात्रा जोड़ों के ईद-गिर्द कोशिकाओं में रक्त एवं ऑक्सीजन के प्रवाह को बाधित करती है।
सही जांच जरूरी
मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द की शिकायत आज आम बात हो गई है। शहरों में यह स्थिति ज्यादा गंभीर है, जहां शारीरिक गतिविधियां लोगों में कम हैं। इसलिए सही जांच जरूरी है। इसके लिए हड्डी रोग विशेषज्ञ की बजाय गठिया रोग विशेषज्ञ के पास जाएं। दूसरे बिना जांच के गठिया या आर्थ्राइटिस की दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे दवाओं के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। स्टेरॉइड वाली दवाओं का तो सेवन कतई नहीं किया जाना चाहिए।
जरूरी है सही जांच
बीमारी का गलत इलाज ज्यादा घातक हो सकता है। हाल में एक व्यक्ति पीठ की दर्द की शिकायत के साथ पहुंचे। उन्हें डॉक्टर ने स्लिप डिस्क बता कर ऑपरेशन की सलाह दे दी थी। वह सेकेंड ओपिनियन के लिए आए थे। जांच के बाद पाया कि यह स्लिप डिस्क का मामला नहीं था और न ही गठिया का। उन्हें सिर्फ पीठ दर्द की शिकायत थी। वह हवाई यात्राएं व कंप्यूटर कार्य ज्यादा कर रहे थे, जिससे एक स्थिति में बैठने के कारण यह बीमारी हुई। हमने उन्हें कुछ व्यायाम बताए एवं हवाई जहाज में बैठते समय सावधानियां बरतने को कहा। छह-सात महीनों में जब वे दोबारा आए तो समस्या खत्म हो गई थी।
दूसरा, एक 23 वर्षीय महिला हाथों में आर्थ्राइटिस की समस्या लेकर आईं। वह आर्थ्राइटिस की दवा ले रही थीं। लेकिन हमने जब रिपोर्ट देखी तो उन्हें आर्थ्राइटिस नहीं था, बल्कि लिवर में कुछ समस्या थी, पर आर्थ्राइटिस की दवा देने के बाद उन्हें पीलिया ने पकड़ लिया था। एक अन्य मामले में एक 63 वर्षीया महिला नसों में सूजन के आर्थ्राइटिस से पीडि़त थीं, जिससे
उनके मुंह से खून आ रहा था, पर डॉक्टर टीबी की दवा दे रहे थे।
सिर्फ जांच ही काफी नहीं
यह देखा गया है कि अकसर लोग ईएसआर, सीआरपी जैसे टैस्ट पॉजिटिव निकलने पर उसे गठिया मान लेते हैं। यह सही नहीं है। यह शरीर में सिर्फ सूजन व संक्रमण दर्शाते हैं। यह हमेशा गठिया का पैमाना नहीं होता। इसी प्रकार रूमैटाइड फैक्टर (आरएफ) एंटी न्यूक्लियर एंटीबॉडीज (एएनए) के पॉजिटिव निकलने का मतलब भी गठिया संक्रमण जरूरी नहीं है। पांच फीसदी स्वस्थ लोगों में भी यह टैस्ट पॉजिटिव निकलते हैं।
इलाज की सुविधाओं की कमी
देश में 7 से 18 फीसदी आबादी के गठिया या मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त होने का अनुमान है, लेकिन इलाज की सुविधाएं बेहद कम हैं। रूमैटॉलॉजिस्ट की देश में सिर्फ 15 पोस्ट ग्रेजुएट सीटें हैं। देश में आधा दर्जन अस्पतालों में ही रूमैटॉलजी विभाग है। इसे गैर संचारी रोगों की श्रेणी में भी नहीं रखा गया है, इसलिए सरकारी नीतियों में इस बीमारी पर खास जोर नहीं है।
कुछ तथ्य
' यह नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों में पाया जाता है। मां से बच्चे में भी आ सकता है।
' स्त्रियां अधिक शिकार हैं। ताजा शोध बताते हैं कि युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।
' ऑस्टियोआर्थ्राइटिस सबसे अधिक पाया जाने वाला गठिया है। गठिया होने पर रूमैटॉलॉजिस्ट से सलाह लें, हड्डी रोग विशेषज्ञ से नहीं। यह दवा से ठीक होने वाली बीमारी है, शल्य क्रिया से नहीं।
' दुनिया में प्रतिवर्ष आर्थ्राइटिस से सौ अरब डॉलर की क्षति होती है। करीब दस लाख लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं और पांच करोड़ लोग ओपीडी में जाते हैं।
Saabhar: www.livehindustan.com
देश में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां मधुमेह, रक्तचाप, दिल के रोग आदि बढ़ रहे हैं, लेकिन एक और बीमारी है, जो तेजी से अपने पैर पसार रही है। खेद की बात यह है कि इसकी ओर नीति-निर्माताओं का ध्यान भी कम है। यह रोग है मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द से जुड़ा गठिया या आर्थ्राइटिस।
इसमें मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, सूजन, लालिमा पैदा होती है। इसके रोगी को उठने-बैठने, चलने-फिरने, झुकने या किसी खास किस्म का कार्य करने में तकलीफ होती है। इसे रूमैटिज्म या गठिया कहते हैं। गठिया की बीमारी करीब दो सौ किस्म की होती है। कई बार कई किस्म के बुखार या कभी-कभी मांसपेशियों के दबने या उन पर दबाव पड़ने की वजह से भी मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है। मोटे तौर पर यदि सुबह उठने के बाद आधे घंटे के भीतर शरीर की जकड़न दूर नहीं हो रही है तो यह गठिया के लक्षण हो सकते हैं।
गठिया क्यों बढ़ रहा है?
इसके लिए पर्यावरण से जुड़े कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि जहां प्रदूषण की समस्या ज्यादा गंभीर है, वहां गठिया ज्यादा हो रहा है। आर्थ्राइटिस आंतों में संक्रमण की वजह से भी होता है, जिसकी वजह दूषित खान-पान हो सकता है।
नए अध्ययन संकेत दे रहे हैं कि जीवनशैली भी इस बीमारी को बढ़ा रही है। ज्यादा खाने-पीने के कारण मोटापे की चपेट में आने, एक स्थिति में ज्यादा देर तक बैठे रहने, कंप्यूटर पर लंबे समय तक कार्य करने, कंधे व गर्दन के बीच मोबाइल दबा कर लंबे समय तक बात करने जैसी स्थितियों से भी मांसपेशियों एवं जोड़ों का दर्द होता है। हालांकि यह गठिया नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव गठिया जैसे ही महसूस होते हैं। दूसरे ज्यादा उम्र वालों में ही नहीं, बच्चों व जवानों में भी गठिया हो रहा है।
प्रदूषण बड़ा कारक
गठिया को लेकर हमने एम्स की ओपीडी में आने वाले 300 मरीजों के आंकड़े जुटाए हैं। आरंभिक जांच में यह पाया गया कि जब दिल्ली में पीएम-2.5 की मात्रा हवा में ज्यादा पाई गई, तब गठिया के रोगी ज्यादा सामने आए। ऐसे मरीजों के आंकड़े एकत्र किए गए, जिससे यह बात सामने आती है कि जब हवा में पीएम-2.5 ज्यादा मात्रा में घुल जाते हैं तो यह सांस लेने के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। रक्त के साथ ये शरीर के सभी अंगों में पहुंचते हैं। इसी प्रक्रिया में पीएम-2.5 की मात्रा जोड़ों के ईद-गिर्द कोशिकाओं में रक्त एवं ऑक्सीजन के प्रवाह को बाधित करती है।
सही जांच जरूरी
मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द की शिकायत आज आम बात हो गई है। शहरों में यह स्थिति ज्यादा गंभीर है, जहां शारीरिक गतिविधियां लोगों में कम हैं। इसलिए सही जांच जरूरी है। इसके लिए हड्डी रोग विशेषज्ञ की बजाय गठिया रोग विशेषज्ञ के पास जाएं। दूसरे बिना जांच के गठिया या आर्थ्राइटिस की दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे दवाओं के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। स्टेरॉइड वाली दवाओं का तो सेवन कतई नहीं किया जाना चाहिए।
जरूरी है सही जांच
बीमारी का गलत इलाज ज्यादा घातक हो सकता है। हाल में एक व्यक्ति पीठ की दर्द की शिकायत के साथ पहुंचे। उन्हें डॉक्टर ने स्लिप डिस्क बता कर ऑपरेशन की सलाह दे दी थी। वह सेकेंड ओपिनियन के लिए आए थे। जांच के बाद पाया कि यह स्लिप डिस्क का मामला नहीं था और न ही गठिया का। उन्हें सिर्फ पीठ दर्द की शिकायत थी। वह हवाई यात्राएं व कंप्यूटर कार्य ज्यादा कर रहे थे, जिससे एक स्थिति में बैठने के कारण यह बीमारी हुई। हमने उन्हें कुछ व्यायाम बताए एवं हवाई जहाज में बैठते समय सावधानियां बरतने को कहा। छह-सात महीनों में जब वे दोबारा आए तो समस्या खत्म हो गई थी।
दूसरा, एक 23 वर्षीय महिला हाथों में आर्थ्राइटिस की समस्या लेकर आईं। वह आर्थ्राइटिस की दवा ले रही थीं। लेकिन हमने जब रिपोर्ट देखी तो उन्हें आर्थ्राइटिस नहीं था, बल्कि लिवर में कुछ समस्या थी, पर आर्थ्राइटिस की दवा देने के बाद उन्हें पीलिया ने पकड़ लिया था। एक अन्य मामले में एक 63 वर्षीया महिला नसों में सूजन के आर्थ्राइटिस से पीडि़त थीं, जिससे
उनके मुंह से खून आ रहा था, पर डॉक्टर टीबी की दवा दे रहे थे।
सिर्फ जांच ही काफी नहीं
यह देखा गया है कि अकसर लोग ईएसआर, सीआरपी जैसे टैस्ट पॉजिटिव निकलने पर उसे गठिया मान लेते हैं। यह सही नहीं है। यह शरीर में सिर्फ सूजन व संक्रमण दर्शाते हैं। यह हमेशा गठिया का पैमाना नहीं होता। इसी प्रकार रूमैटाइड फैक्टर (आरएफ) एंटी न्यूक्लियर एंटीबॉडीज (एएनए) के पॉजिटिव निकलने का मतलब भी गठिया संक्रमण जरूरी नहीं है। पांच फीसदी स्वस्थ लोगों में भी यह टैस्ट पॉजिटिव निकलते हैं।
इलाज की सुविधाओं की कमी
देश में 7 से 18 फीसदी आबादी के गठिया या मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त होने का अनुमान है, लेकिन इलाज की सुविधाएं बेहद कम हैं। रूमैटॉलॉजिस्ट की देश में सिर्फ 15 पोस्ट ग्रेजुएट सीटें हैं। देश में आधा दर्जन अस्पतालों में ही रूमैटॉलजी विभाग है। इसे गैर संचारी रोगों की श्रेणी में भी नहीं रखा गया है, इसलिए सरकारी नीतियों में इस बीमारी पर खास जोर नहीं है।
कुछ तथ्य
' यह नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों में पाया जाता है। मां से बच्चे में भी आ सकता है।
' स्त्रियां अधिक शिकार हैं। ताजा शोध बताते हैं कि युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।
' ऑस्टियोआर्थ्राइटिस सबसे अधिक पाया जाने वाला गठिया है। गठिया होने पर रूमैटॉलॉजिस्ट से सलाह लें, हड्डी रोग विशेषज्ञ से नहीं। यह दवा से ठीक होने वाली बीमारी है, शल्य क्रिया से नहीं।
' दुनिया में प्रतिवर्ष आर्थ्राइटिस से सौ अरब डॉलर की क्षति होती है। करीब दस लाख लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं और पांच करोड़ लोग ओपीडी में जाते हैं।
Saabhar: www.livehindustan.com
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